साँप ने फुसकार मारी या नहीं, ढेला उसे लगा या नहीं, यह बात अब तक स्मरण नहीं’-यह कथन लेखक की किस मनोदशा को स्पष्ट करता है?

जब लेखक और उसका छोटा भाई अपने बड़े भाई की दी हुई चिट्ठियों को लेकर मक्खनपुर डाकखाने में डालने जा रहे थे तब उनको वही कुआँ दिखाई दिया जिसमे वे प्रतिदिन ढेला फेंकते थे। उस कुँए को देखकर उनके मन में साँप की फुफकार सुनने की प्रवृत्ति जाग्रत हुई। इसलिए लेखक ने ढेला उठाया और अपनी टोपी उतारते हुए उसे सांप पर फेंका लेकिन जैसे ही लेखक ने टोपी उतारी उसके अंदर रखी हुई साड़ी चिट्ठियां कुँए में गिर गयी। ऐसा होने से मानो लेखक पर बिजली सी गिर गयी हो। दोनों भाई बहुत डर गए और रोने लगे। इसलिए यह कथन सांप ने फुंसकार मारी या नहीं, ढेला उसे लगा या नहीं, अब तक यह बात उनको स्मरण नहीं है लेखक की निराशा और पिटने के डर को व्यक्त करता है।


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